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जीने के लिए / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
हम प्रेम के लिए नहीं जीते
हम सपनों के लिए भी नहीं जी सकते
ज़िम्मेदारियाँ जीने के बहाने नहीं गढ़ सकती
ना ही स्वार्थ, ना कामना, ना लालसा
ज़िन्दा रह सकने के लिए बस एक हवादार शाम,
एक पुरज़ोर खिला फूल,
एक स्निग्ध तरल हँसी
एक भरपूर उगी सुबह
एक प्याली चाय,
बुकमार्क लगी एक किताब
और ख़ुद का साथ काफ़ी है