भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीने के लिए / सदानंद सुमन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितना कुछ है यहाँ
जीने के लिए

कुछ सपने
जिसके पूरे होने के
सुखद इंतजार में
कटे एक-एक पल
भले ही हो वह
एक लम्बा इन्तजार

कुछ वायदे
जिनको निभाने में
गुजर जाये वक्त की नदी का
चाहे जितना पानी
लेकिन बनी रहे चाहत
उनके पूरे होने की

सुख का एक क्षण
जिसे रखा जा सके सहेज कर
मन के किसी सुरक्षित कोने में
ताकि आये वह काम
बुरे दिनों में
किसी मरहम की तरह

कोई करे इन्तजार
दिल की धड़कन की तरह
दिलाये एहसास
अपने जीवित होने का
भटक-भटक कर
जहाँ वापस जाने का करे मन
किसी बावरे की तरह

हाँ, बहुत है इतना भी
जिन्दा रहने के लिए!