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जीने के लिये दुनियाँ में प्यार जरूरी है / रंजना वर्मा

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जीने के लिये दुनियाँ में प्यार ज़रूरी है
उस में भी मगर थोड़ी तक़रार ज़रूरी है

उल्फ़त की गली टेढ़ी बस इतना समझ लीजे
इसरार से भी पहले इनकार ज़रूरी है

यूँ तो ज़माना अपने बूते पर चला करता
अल्लाह की दुनियाँ में दरकार ज़रूरी है

इंसान की रंगत तो खुशियों पर है मुनहसिर
औरत के लिये लेकिन सिंगार ज़रूरी है

ग़म यूँ भी नहीं हैं कम मुफ़लिस की ज़िन्दगी में
उस ग़म से उबरने को त्यौहार ज़रूरी है

रब भी तो है तुल जाता उल्फ़त की तराजू में
इंसां के लिये फिर क्यों हथियार ज़रूरी है

कागज़ न कलम चहिये एहसास की नगरी में
कहने को ग़ज़ल कोई अशआर ज़रूरी है