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जीभलड़ीने चोखी बाण पड़ी / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग काफी-ताल दीपचंदी)
जीभलड़ीने चोखी बाण पड़ी।
रटती रहै नाम निसदिन अब भूलै न पलक-घड़ी॥
कनै न आवै थोथी चरचा देखै परै खड़ी।
बरस रही इमरत-रस-धारा लागी सरस झड़ी॥
जनम-जनमको जहर उतर गयो पाई अमर जड़ी।
हरि किरपा, टूटै न नामकी कदे या रतन-लड़ी॥