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जीवण-जुध / मोहन सोनी ‘चक्र’
Kavita Kosh से
हथेळी रै बिचाळै
रगड़ आंगळी सूं
दे फटकारो
चाब नैं बीड़ो
दूजी हथेळी सूं
जद झाड़ देवै सगळी
चिंता-फिकर
उठा लेवै तगारी,
इयां लागै
जाणै बांध’र कफण
हुयग्यो है त्यार
रणबांकुरो लड़णै सारू
एक जुध।