वार्ता- चापसिंह को सोमवती की बात पर विश्वास नहीं आता तथा और भी अधिक क्रोध में क्या कहता है-
मेरे माथे में बल न्यूं पड़गें तनै आग्यी बात बणाणी
जीवण जोगा छोड़्या कोन्या सुणले माणस खाणी।टेक
उस दिन नै मैं रोऊं सूं जब तेरा डोळा उठया था
होगे सोण कसोण हाथ तैं जब कोड़ा छूटया था
मात पिता ना बुआ बहाण न्यूं भाग मेरा फूट्या था
तनै छोड़ एकली गया नौकरी मेरा दिल सा टूट्या था
ईब मारै बात खड़ी हांसै तूं खा कै खूद बिराणी।
गीता और रामायण तज कै बणगी पीर मढ़ी तूं
भजन छोड़ श्री कृष्ण जी का मस्जिद बीच चढ़ी तूं
गंगा जमना तीर्थ तजकै मक्के कैड़ बढ़ी तूं
वेद सास्त्र छोड़ दिये कर याद कुरान पढ़ी तूं
तनै साड़ी छोड़ पहर लिया बुरका तूं हाडै बणी पठाणी।
कहे सुणे की ना मानी तूं बणगी मन की मैली
शेरखान नै महलां में तूं बातां कै म्हां दे ली
मुसलमान की गौरी ईब तूं बणगी नई नवेली
दोनूं चीजां नै नाटूं था तनै धिंगताणा कर ले ली
मुट्ठी चापी भरी नुहवाया वो करकै ताता पाणी।
के बेरा था सोमवती तूं ओड पवाड़ा रच ज्यागी
खो दिया दीन ईमान तनै बता ईब कित ईज्जत बच ज्यागी
कुछ तो पहलां खिंचरी थी कुछ ईब आगै खिंच ज्यागी
तड़कै फांसी टूटूं दरबारां में जिब तेरै पक्की जंच ज्यागी
कित की बन्नो ब्याही मेहर सिंह करली कुणबा घाणी।