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जीवण / राजेश कुमार व्यास
Kavita Kosh से
जागूं जणै
उजास हुय जावै
उजास, जीवण है।
अंधारो हुवै जणै
नींद आ जावै
नींद, मिरतु है।
लिखूं जणै
अकास हुय जावूं
अकास, मन है।
सोवूं जणै
सुपना आवै
सुपना, अकास है।
मिंदर जावूं जणै
अरदास करूं
अरदास, पछतावो है।
नीं पड़ै पार जणै
रीस आवै
रीस, अंतस रो डर है।
उजास / नींद/
अकास / सुपना
अरदास / रीस-
आं सगळां नैं
भेळा कर
जीवूं ओ जीवण।