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जीवतै जागतां री कबर है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
जीवतै जागतां री कबर है
म्हैं किंयां कैवूं-हां, औ घर है
म्हारो दूध पी म्हनै ई डसै
ऐ कद गुण मानै, ऐ विषधर है
अळधै सूं देख रस्तो बदळै
जमाने री हवा रो असर है
मत जा टाबरिया सड़क माथै
पग-पग धुंवो धुंवै में डर है
मिलां मुळकां पण मन में खरास
म्हारी मान कीं न कीं कसर है