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जीवनक बरोबरि की / अविरल-अविराम / नारायण झा
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नित रक्तसँ
सिक्त होइत धरती
रिक्त होइत मनुजक
धड़सँ मूड़ी हटल
रक्ते धरती पटल
ओ एखने पड़ायल
एमहर....
ओमहर ....
ओह !
अधगेड़े पर छौ पड़ल
घरमे झौहरि
पुलिसक आबाजाही
खोजी कुत्ता
सुंघैत यत्र-तत्र
फोटो फाटो गत्र-गत्र
पुलिसक शमियाना खसल।
अधिकारी कारी, कोन गोर
सबहक एकटंगा दौड़
उच्चस्तरीय कमिटीक गठन
रंगबिरही जाँच-पड़ताल
छह महीनासँ
दू चारि साल
हत्यारा पकड़ायल
यैह ले, बैह ले भागल
पुनः जाँच
की झूठ, की साँच
विपत्तियेक पहाड़ टूटल
पुनः तक्काहेरी
कखन पड़तै
हत्याराक हाथ बेड़ी
अगम-अथाहमे
ओ परिवार उबडुमाइत
नोरक धारमे
ओ नहाइत
जीवनक बरोबरि की
हाथ हरजाना भेटल।