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जीवनी / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
चित्र जो
अतीत धुन्ध में
समा गया --
उसे
पुनः-पुनः उरेहना।
जो बिखर गया
जगह-जगह
व्यतीत राह पर --
उसे
विचार कर समेटना।
जो समाप्त-प्राय --
बार-बार
चाह कर
उसे सहेजना।
रीति-नीति
काव्य की नहीं !
जीवनी :
विगत प्रवाह,
जी चुके।
काव्य :
वर्तमान
वेगवान
जी रहे।