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जीवन-तन्त्री के तार तार / रामकुमार वर्मा
Kavita Kosh से
जीवन-तन्त्री के तार तार।
मदन-तीर की पीड़ा लेकर
कसक रहे हैं बार बार॥
अपने स्थल पर ही रहकर
छूते हैं विस्तृत नभ अपार।
प्रति पल आकर पहन पहन--
जाते ध्वनियों के हिले हार॥
नव-बाला के यौवन से
साकार और कुछ निराकार।
मीड़ वेदना है, उसमें सुख--
स्वर्ग तड़पता बार बार।
जीवन-तन्त्री के तार तार।