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जीवन-राग / अपर्णा अनेकवर्णा

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हर दिन.. एक पर्व.. एक अध्याय..
किसी महाग्रन्थ का सा..
अपनी अनिश्चितता पर बन्द होता है
आप दिन भर अकेले रहे या भीड़ में
अवसादग्रस्त रहे.. या शान्त..
राग-मग्न या वियोग-व्यग्र..
कुछ ढूँढ़ते रहे... या फिर पा ही लिया..
कल भी यूँ ही होगा.. क्या पता...

हर जगह कुछ घेरे हैं..
हर घेरे में कुछ चेहरे..
कुछ जाने-पहचाने.. कुछ अनजाने..
कुछ तथाकथित अपने..
कुछ बड़े परिचित से दूजे
पहचान बने.. बनी रहे.. या रीत जाए..
उपक्रम जारी रहने तक जीवन जीवित है..

जीवन राग बेहद एकरस है...
जीवन्त सम्भावनाओं की तलाश..
जारी है...