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जीवन उड़ता है / नरेश अग्रवाल

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रात की तरह हूं मैं
रात को ओढ़े हुए
और सुबह मुझे, सुबह की चादर ओढ़ा देगा,
नदियों के जल, तुम्हें पी सकता हूं मैं
लेकिन समुद्र को नहीं
और सुनो अस्तित्व
कृपा करना मुझ पर भी इतनी
जो सांसें लौटा दी है मैंने तुझ पर
वापस मुझे न लौटाना।
- चाहता हूं मैं
सारे पेड़ों की तरह मस्त होकर
हमेशा नया रहना,
जीवन उड़ता है मेरा, चिडिय़ों की तरह
आवाज देता है मुझे
लेकिन नहीं है पंख, मेरे पास अब तक।