जीवन का एक लघु प्रसंग / त्रिलोचन
- तब मैं बहुत छोटा था
- कौन साल, कौन मास और कौन दिन था
- यह सब कुछ याद नहीं,
- जानता भी नहीं था,
- पढ़ता था;
- नाम और ग्राम लिखना आ गया था
- स्कूल जाने का समय हो आया था
- बहुत व्यग्र बुआ के पास खड़ा-खड़ा मैं
- उससे किताबें नई लेने के लिए पैसे मांग रहा था
बुआ ने पूछा : जो किताबें अभी ली गई थीं उसको क्या पढ़ लिया
मैंने कहा : कब न पढ़ा, अब तो नई चाहिए, और सब ख़रीद चुके
- दर्ज़े में जितने हैं, केवल मैं बाक़ी हूँ ।
बुआ ने कहा : अभी वही पढ़ो, फिर पैसे दूंगी, कुछ दिन बीते,
- ले जाना नई लेना,
मैंने कहा : बुआ, यह कैसे हो सकता है, वह दर्ज़ा पास कर चुका हूँ मैं,
- अब नई लेनी हैं, किताबें पुरानी बेकार हैं
बुआ ने कहा : किसी लड़के से मांग लो ना, तुमसे जो आगे पढ़ता रहा हो,
- वह दर्ज़ा पास कर चुका हो अब, जिसमें तुम नए-नए आए हो,
मैंने चिढ़ कर कहा : बुआ, वे किताबें अब बदल गईं ।
बुआ ने पूछा : क्यों ?
- क्या जानूँ-- मैंने कहा,
अर्ध स्वगत बुआ बोलीं-- सभी पैसे कमा रहे हैं,
- मैंने पूछा : बुआ, क्या कहती हो, दाम मुझे देती हो,
बुआ ने कहा : आज मदरसे तुम चले जाओ, मास्टर से कह देना :
- पैसे आज नहीं मिले, कल तक मिल जाएंगे
तब तक माँ आई और उसने कहा : रोज़-रोज़ कहती हूँ,
पढ़-लिख कर क्या होगा, पढ़ना अब बन्द करो इसका, घर काम करे,
- पढ़ना हमारे नहीं सहता, पर बात मेरी कौन यहाँ सुनता है ।
रान-परोसी कहते हैं, लड़का इन्हें भारी है, इसी राह खो रहे हैं ।
बुआ ने मुझ से कहा चिल्ला कर : जाओ तुम, नहीं तुम्हें देर होगी
- सब चले गए होंगे ।
लेकिन मैं बुआ के पीछे जा खड़ा हुआ,
पूरी बात सुनना मैं चाहता था, गया नहीं ।
बुआ ने कहा : धन्य बुद्धि, जो नहीं पढ़ते, वे सब क्या अमर हैं ?
माँ ने कहा : देखते हुए मक्खी लीलते नहीं बनता,
- पढ़-लिख कर ही आख़िर फलाने विक्षिप्त हुए,
- पढ़ते-लिखते ही तीन-चार जने मर गए,
- तुमको तो जैसे कहाँ पत्ता भी नहीं खड़का,
- गिरते हुए थोड़ा भी
बुआ ने का : दुलहिन (माँ को वे यही कहा करती थीं ) इस बच्चे को
- मैंने श्रद्धा से, प्रेम से, निष्ठा से,
- विद्या को दान कर दिया है,
- जानबूझ कर दान कैसे फेर लूँ,
- ऎसा कभी नहीं हुआ--
- विद्या माता ही अब इसको निरखें-परखें ।
- रक्षा और पालन-पोषण करें !