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जीवन का खेल / तेज प्रसाद खेदू
Kavita Kosh से
खेल यही इस जीवन का
कुछ खोना कुछ पाना
कभी रोना कभी हँसना
खेल यही इस जीवन का
गिरकर उठना चलकर फिर गिरना
हर ठोकर से सँभलना है
सँभल कर फिर ठोकर खाना
खेल यही इस जीवन का
जो दे वही लेना है
जो ले वही देना है
और बस चुप रहना
खेल यही इस जीवन का
बोया हुआ खुद काटना
दूसरों के लिए खुद जल जाना है
आपस में प्यार, प्रेम से रहना
खेल यही इस जीवन का।