जीवन का जहाज / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
तेरे प्यार में मेरे जीवन का जहाज डूब रहा है
दुनिया की चीज़े बह रही हैं
पैसा बह रहा है सुविधाएँ जा रही है
तेरे प्यार की विशालता में सबकुछ हिल रहा है
कितना बड़ा है इसका घेरा में तो समझ ही नहीं पाया
मैं छोटा हो गया तेरे प्यार का पानी चढ़ गया
दुनिया के शहर में आया तो रंगीन हो गया
तालाब का पानी बन कर शाम की तरह चमक उठा
सुबह तेरे घर जाने वाली सड़क बना
दुनिया में जो अच्छा हो रहा है तेरा ही प्यार है ..
हवा के साथ ठंडक की तरह मेरी साँसो में आता है
मेरे शहर से मिल कर बना है ...तेरा प्यार
मेरे शरीर में रोज़ पानी की तरह उतरता है
मेरी आँखों में रोज़ धूप की तरह भरता है
तेरा ही प्यार फैला है हर गली, हर सड़क पर
तू भी नहीं बच सकी और मैं भी नहीं बच सका
कैसा है तेरा प्यार कैसा है हमारा उसमे ग़ुम जाना