लो, चुक गया जीवन का सब लेन देन,
बनलता सेन
गई हो तुम कहाँ आज इस बेला
जारी है कठफोड़वा का दोपहर से ही खेला
आ भी गई है सारिका अपने घोसले को
लहरें भी लगी है नदी की थमने
फिर भी तुम क्यों नहीं हो कहीं
मन है बेचैन
मेरी अपनी
बनलता सेन
देखा नहीं तुम्हारे जैसा किसी को कहीं
सबसे पहले चली क्यों गई तुम
बना कर मेरे इस जीवन को मरुभूमि
समझ नहीं पाया आज तक
(क्यों ये तुम ही थी?)
धरी रह गई सारी कोशिशें
फिर भी रुक न पायी तुम
मेरी जानी पहचानी
बनलता सेन
दूर क्षितिज में फैलती लालिमायें
वहीं किसी बस्ती के कोने में पड़े सो रहते हम
अचानक हवा के थपेड़ों से जागते मानो
दूर पेड़ों के झुरमुट के पीछे स्टेशन पर आ लगी हो रातवाली ट्रेन
मेरी नींदें चुराती
बनलता सेन
लो, चुक गया जीवन का सब लेन देन,
बनलता सेन