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जीवन की एक जरूरी कविता / संतोष कुमार चतुर्वेदी

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दुनिया की तमाम भाषाओं
दुनिया की तमाम बोलियों से इतर
हर भाषा और बोली में
प्रेम की
अपनी खुद की
एक अलग भाषा और बोली हुआ करती है

प्रेम के शब्दों के परंपरागत अर्थ
खोजे जाय अगर शब्दकोश में
तो मायने सुलझने की जगह
और उलझ सकते हैं
क्यों कि
इसका अपना
बिल्कुल अपना शब्दकोश है
निराले अंदाज वाला
अनदेखा
अनलिखा

मसलन
जब मेरी वह कहती है
नहीं चाहती मैं तुम्हें
तो दरअसल यह उसका
हमको और अधिक चाहना होता है
और जब मेरी वह कहती है
तुम्हें कुछ भी नहीं मालूम
कि तुम्हारे प्यार के लिए
मैं मर रही हूँ कितना
तो वास्तव में
यह उसका जीना होता है
भरपूर उछाह के साथ जीना
अपनी प्यार वाली दुनिया में

जब वह हमसे झगड़ती है बात बात पर
यह उसका और अधिक प्यार जताने का तरीका होता है
इसे और अधिक साफ करते हुए कहती है वह
जिससे प्यार करता है आदमी
उसी से तो झगड़ सकता है ना वह
राह चलते लोगों से कौन झगड़ता है भला

उसका यह कहना कितना ठीक है कितना बेठीक
इसके पचड़े में न पड़ कर मैं खुद
उसके खुले बालों में अपनी उँगलियाँ लहराते हुए
होठों को सीटी की शक्ल में ले जाकर
कोई रोमांटिक गीत गाते हुए
जब कहता हूँ मैं
कुछ भी अच्छा नहीं लगता अब मुझे
तो इसका मतलब यह होता है
कि प्यार में सब कुछ
यहाँ तक कि दुनिया की एक एक चीज
बेहद खूबसूरत लगने लगी है हमें
प्यार के इन बेहतरीन पलों में

प्यार की खुरदरी सी राह पर चलते हुए
किसी नौसिखिया की तरह

डगमगाते रहते हैं हमारे कदम
और तमाम बाधाओं से डरते भी रहते हैं हम
जबकि हकीकत में होता यह है
कि अपने भरपूर हौंसले से
प्यार करते हुए एक दूसरे को
चल रहे होते हैं हम
बढ रहे होते हैं हम
प्रतिपल
आगे... ...और आगे
पूरी निडरता के साथ

जीवन के कण कण में
रहता हुआ
बहता हुआ
सतत जीवन की
अनवरत कहानी कहता हुआ प्यार
कहाँ कभी रीता
कहाँ कभी बीता
यह तो
जीवन के लिए
और जीवन की ही एक जरूरी कविता

अगर अनुवाद करना हो किसी को
हमारी सीधी सादी इन पंक्तियों का
तो कविता के गुणी के तरह का ही
हुनरमंद होना पड़ेगा उसे
जिसमें शब्दों को नहीं उतारा जाता
उनके परंपरागत शब्दकोशीय अर्थों वाले
कार्बनीय लहजे में
बल्कि जहाँ देनी पड़ती है
अक्षर दर अक्षर
शब्द दर शब्द
पंक्ति दर पंक्ति के बीच की
खाली जगहों के
भावों को भी तरजीह