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जीवन की पहेली को सुलझाना आसान नहीं होता। / पल्लवी मिश्रा

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जीवन की पहेली को सुलझाना आसान नहीं होता।
प्रारब्ध की हकीकत को झुठलाना आसान नहीं होता।

ख़्वाबों का शीशमहल यूँ तो हर कोई बना सकता है।
उसको तूफां, बारिश, ओले से बचाना आसान नहीं होता।

ईंट, गारे, पत्थर से दीवारें, छत बन सकती हैं शायद,
पर हर एक मकां को घर बनाना आसान नहीं होता।

वह सत्युग की बात थी, जब राम ने कठिन वचन निभाया,
कलयुग में कसमों को निभाना आसान नहीं होता।

प्रेम, आस्था, भक्ति हो तो पत्थर भी बन जाए खुदा,
पर किसी पत्थर को इंसान बनाना आसान नहीं होता।

धूप, कपूर, चंदन की आहुति हर पूजा में दी जाती है,
आहुति में अहं जलाना आसान नहीं होता।

जिस्म पर लगी हर चोट यूँ तो काबिल-ए-बर्दाश्त है,
दिल पर मगर जो चोट लगे, सह पाना आसान नहीं होता।

मिट्टी हो अनुकूल अगर, उपवन जाता फूलों से भर,
पर सहराओं में फूल खिलाना आसान नहीं होता।