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जीवन की महक हो तुम / बोधिसत्व
Kavita Kosh से
कभी धनिया, कभी हल्दी, कभी अचार की महक
कभी दाल में जीरे के छौकन बघार की महक
कभी चन्दन कभी अगरू कभी गुल बहार की महक
कभी तरबूजे कभी केवड़े हर कभी सिंगार की महक
कभी जली रोटी कभी सिरके, कभी कच्चे दूध की महक
कभी इतर, कभी फुलेल, कभी आबसार की महक
कभी साँसों, कभी पलकों, कभी मेंहदी की महक
कभी नेलपालिश, कभी लाली, कभी पाउडर की महक
कभी जूड़े में फँसे सुफ़ेद लाल नीले फूलों की महक
तुमसे आती इन महकों में है जीवन की महक
इस महक से मैं जीता हूँ चहक-चहक।