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जीवन की हैं लम्बी रातें सपना रहा अधूरा मेरा / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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जीवन की हैं रातें लम्बी सपना रहा अधूरा मेरा॥
दर्द की सभी दहलीज़ों को
यह मन मेरा पार कर चुका ,
टूटी उम्मीदों का दानव
कई बार है वार कर चुका।
जहाँ बिछी हो चटक चाँदनी मृदुल कल्पना करे बसेरा।
जीवन की हैं लम्बी रातें सपना रहा अधूरा मेरा॥
बुझती जलती रहीं चिताएँ
अरमानों की धीरे धीरे ,
कभी टूट कर गिरा न अम्बर
काँपी नहीं कभी अवनी रे।
सभी दिशाओं से पर फिर भी केवल घिरता रहा अँधेरा।
जीवन की हैं लम्बी रातें सपना रहा अधूरा मेरा॥
एक बार यदि आ जाते तुम,
खिल जाता सपनों का गुलशन।
हवा चन्दनी बहने लगती,
मिल जाता चाहत का मधुबन।
फिर से इन काली रातों का होता स्वर्णिम सुखद सवेरा।
जीवन की हैं लम्बी रातें सपना रहा अधूरा मेरा॥