छुप छुप कर मत घात किया कर ।
मिलकर खुलकर बात किया कर ।
चिर अतृप्त सा मैं मरूथल हूँ
तू रस की बरसात किया कर ।
युग की दिशा दशा क्यों भूला
चेत, न इतनी रात किया कर ।
करना है जो कर दिखला दे,
सपनों की न बरात किया कर ।
नीरसता का संचय मत कर,
रंगा रंग जमात किया कर ।
कर दे दुख की साँझ विसर्जित,
सर्जित सुखद प्रभात किया कर ।
जर्जर सा है नीड़ हमारा,
अब मत उल्कापात किया कर ।
ढूँढ रहा क्यों यहाँ तृप्ति को,
निर्मित स्वयं प्रताप किया कर ।
जीवन के पूर्णेन्दु ! मनस में,
मधुर चाँदनी रात किया कर ।