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जीवन को प्यार दिया मैंने / उर्मिल सत्यभूषण

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जीवन को प्यार दिया मैंने
बोलो, क्या पाप किया मैंने
किस्मत की छेनी ने छीला
जब लगा अंधेरों ने लीला
तब बढ़ी
रोशनी की बांहें
उनको अधिकार दिया मैंने
बोलो, क्या पाप किया मैंने
जब भग्न हुये मन के मंदिर
टूटे अवशेष बचे अंदर
निज प्राणों की
ऊर्जा लेकर
खंडहर को संवार दिया मैंने
बोलो, क्या पाप किया मैंने
विष अमृत सा पीना सीखा
मैंने पल-पल जीना सीखा
अब पाप पुण्य
की खुली गांठ
सब भार उतार दिया मैंने
जीवन को प्यार दिया मैंने।