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जीवन को मैं उन सपनों में / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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जीवन को मैं उन सपनों में देखा करता
जीवन में मैं उन सपनों को देखा करता
जीवन मधुमय रसमय सपना
सभी पराया, सभी है अपना
अपनेपन के अन्धकार में
अन्धकारमय एक तड़पना
उस तड़पन में मैं जीवन के मधुल प्यार को देखा करता
जीवन में मैं उन सपनों को देखा करता
मानव को मिलती सुषमा नव
नव मानव, उसकी महिमा नव
नव युग की नव नव धारा में
पाता वैभव और पराभव
किन्तु पराभव के पीछे फिर मैं उद्भव को देखा करता
जीवन को मैं उन सपनों में देखा करता
जगमग दीप जला करता है
उर में स्नेह पला करता है
किन्तु स्नेह के जल जाने पर
जग को दीप छला करता है
फिर भी उस छल पर जलते निश्छल पतंग को देखा करता
जीवन में मैं उन सपनों को देखा करता
मेरी विजय-पराजय क्या फिर
निश्चय और अनिश्चय क्या फिर?
जीवन और मरण के तट पर
संशय औ’ निःसंशय क्या फिर?
अपनी धुन ले अपने पथ पर चलते जग को देखा करता
जीवन में मैं उन सपनों को देखा करता