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जीवन जीने की प्यास / प्रभात रंजन
Kavita Kosh से
हत आस्था
लहू में लथपथ
पराजित सैनिक की
कुहनियों के बल, श्लथ
मृतवत साँप-सी रेंगन
दो बूंदों की हँपहँपाती प्यास-
जीवन की,
जिजीविषु की,
ऎसी जिजीविषा !