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जीवन तो यूँ भी चलता रहता है / मनीषा पांडेय
Kavita Kosh से
जानती हूँ एक दिन
तुम यूँ नहीं होगे मेरी जद में
एक दिन तुम पाँव उठा अपनी राह लोगे
जीवन तब भी वैसा ही होगा
जैसा तब हुआ करता था
जब तुम छूते नहीं थे मुझे
वैसे ही उगेगा सूरज
बारिश की बूँदें भिगोएँगी तुम्हारे बाल
पेड़ों के झुरमुट में
अचानक खिल उठेगा
कोई बैंगनी फूल
गोधूलि में टिमटिमाएगी दिए की एक लौ
एक प्रिय बाट जोहेगी
अपने प्रेमी के लौटने की
तारे वैसे ही गुनगुनाएंगे विरह के गीत
लोग काम से घर लौटेंगे
मैं वैसी ही होऊँगी तब भी
बस, मेरी पलकों पर तुम्हारे होंठों की
छुअन नहीं होगी
चुंबनों से नहीं भीगेंगी मेरी आँखें
एक स्मृति बची रह जाएगी
झील के किनारे की एक रात
उन रातों की याद
वरना क्या है
जीवन तो फिर भी चलता ही रहता है