जीवन दुख से भार न होता / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
जीवन दुःख से भार न होता
काश हृदय में प्यार न होता
प्यार बिना मन कैसे खिलता
फिर किससे कोई क्यों मिलता
मिलता जब न बिछुड़ता कैसे
तब क्यों कर होती व्याकुलता
निपट अकेले भवसागर में
माँझी बिन पतवार होता
काश हृदय में प्यार न होता
करता कौन प्यार की बातें
खलती नहीं जागती रातें
क्यो दिल के विश्वास टूटते
होती न आँसू की बरसातें
ज़ख़्म लिए दिन रात रुलाने
कोई बेवफ़ा यार न होता
काश हृदय में प्यार न होता
सारा जीवन भ्रम में बीता
सपनों में हारा या जीता
भरता रहा निरन्तर फिर भी
मन का घट रीता का रीता
तड़प तडप कर ज़िन्दा रहने
यह तन कारागार न होता
काश हृदय में प्यार न होता
लोग किसी के घर क्यों जाते
नहीं बनाते रिश्ते नाते
स्वयं बनाये सम्बन्धों की
नहीं फ़र्ज़ की रस्म निभाते
खोज-खोज दुख पहुँचाने को
कोई रिश्तेदार न होता
काश हृदय में प्यार न होता