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जीवन बिना दुख के / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना

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मैंने चाहा कि मैं शान्त रहूँ
रहूँ बुद्धिमान और स्थिरचित्त
लेकिन यह सम्भव नहीं हुआ
फ़कत एक घण्टे के लिए भी नहीं
अगर कहीं तूफ़ान पेड़ों पर से गुज़रा
मुझे लगा — मुझे भी रौन्द डाला है तूफ़ान ने

मैं ऐसे जीना नहीं चाहता था । मैंने चेष्टा की
शिरकत की नहीं । परे होने की ।
लेकिन कहीं कोई भी रोया तो मेरी आँखों से
आँसू ढुलक पड़े
हर दुनियावी दुख ने तड़पाया मेरे दिल को ।

मैं आजीवन गढ़ता रहा गाढ़ी मेहनत से
निरपेक्ष निस्संग कवच
बख़्शा नहीं दुष्ट भाग्य ने उसे
वज्र मुष्टि से किया उसे विदीर्ण

मैंने चाहा अपने ढब से जीना, एकबारगी
जीना चाहा अपनी मरज़ी से, पर
हृदयंगम की मैंने एक ही बात
गुज़ारा नहीं जा सकता जीवन बिना दुख के,
गुज़ारा नहीं जा सकता बिना व्यथा के ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना