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जीवन बिल्कुल बहता पानी / छाया त्रिपाठी ओझा

लहर-लहर की अजब कहानी।
जीवन बिल्कुल बहता पानी।

मिला रंग इस जग के सारे
चित्र बनाता, समय किनारे
शाश्वत कौन भला रहता है
'नश्वर सब कुछ' जग कहता है
चलता सिर्फ विधाता का ही
लाख करे कोई मनमानी।
जीवन बिल्कुल बहता पानी।

यह मन तो केवल छलता है
लय पर ही जीवन चलता है
धूप-छांव से कब क्या कहती
सांझ सुबह के संग कब रहती
हंसता बचपन दुखी बुढ़ापा
संघर्षों में लिप्त जवानी।
जीवन बिल्कुल बहता पानी।

कहीं दीप से रोशन घर है
कहीं अंधेरे में छप्पर है
कहीं हंसे बारिश की बूंदें
कहीं खुशी है आंखें मूंदें
कर्म-भाग्य में जगह-जगह बस
जारी केवल खींचातानी।
जीवन बिल्कुल बहता पानी।