भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन भर / प्रियंका गुप्ता
Kavita Kosh से
15
देर हो गई
बेटी घर न आई
घबराने लगी माँ
भैया को भेजा-
‘थामे रखना हाथ
भीड़ भरे रस्ते पे।’
16
कोमल हाथ
कलम को पकड़
लिखना सीख रहे
माँ की आँखों में
सपनों का सागर
पार है उतरना ।
17
जीवन भर
रिश्तों की लाश ढोई
दर-दर भटकी
काँधों पर लादे
सपनों का बैताल.
मिला नहीं जवाब ।
18
जब भी चाहा
साथ कोई न आया
अपना या पराया
फिर भी सीखा
गुलाब सी ज़िन्दगी
मुस्करा कर जीना ।
19
ढूँढती फिरे
पनियाली नज़र
बुढ़ापे का सहारा
चिठ्ठी में आए
कितना बँटा-बँटा
कलेजे का टुकड़ा ।
20
कितना चाहा
तेरा साथ निभाना
पर तुझे भाया,
मुझको छोड़
ग़ैरों के काँधों पर
तुझे था पार जाना ।
21
प्यासी धरती
वर्षा की बाट जोहे
बेवफ़ा हैं बादल
कुछ पल को
निहार लेता रूप
मुँह फेर भागता ।