भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन रस / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(चित्रकार प्रीति के लिए)


सूर्योदय दीखता सूर्यास्‍त सा
जल बेचैन एक कुंड के भीतर भी
हवा उद्विग्‍न कि वह ऐसी न थी
घर के भीतर कहीं बच्‍चे की भूख
दीवार के अंदर कहीं धरती का दुख
बादलों में अटकी कहीं जल की आत्‍मा
वर्तुल रेखाओं के बीच दौड़ता ब्रश-विचार
इतनी तल्‍लीनता कि असुंदर समाज में ढूंढती खोये रंग
युद्ध में ध्‍वस्‍त मुस्‍कुराहट के बीच
कसमसाता शवों के बीच एक नन्‍हा
उसके अधरों पर दीखता शेष अभी
रात गुजरी मां के आंचल से उतरा जीवन रस