जीवन वहन भाग्य को नित्य आशीर्वाद से
करने दो स्पर्श ललाट का
अनादि ज्योति के दान रूप में
नित्य नवीन जागरण में
प्रत्येक प्रभात में
मर्त्य आयु की सीमा में।
म्लानिमा का घना आवरण
हटता रहे प्रतिदिन और प्रतिक्षण
अमर्त्य लोक के द्वार से
निद्रा जड़ित रात्रि सम।
हे सविता,
उनमुक्त करो
अपने कल्याणतम रूप को,
उस दिव्य आविर्भाव में
देखूं मैं
निज आत्मा को
मृत्यु के अतीत जो।
‘उदयन’: शान्ति निकेतन
प्रभात: 7 पौष 1997