भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन समर मे / ऋषभ देव शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन-समर में जब गिरा मित्रों के घात से
हर घाव को सहला गए बस तेरे हाथ थे

रक्षा-कवच बना दिया आँचल की छाव से
वरना मैं कैसे झेलता दिन-रात हादसे

पाँवों में शूल जो चुभे पलकों से चुन लिए
वनवास की हर राह में हम साथ-साथ थे

मैं रेत-रेत हर दिशा में दौड़ता फिरा
मधु गंध रूप रस बने तुम आस पास थे

लहरों से लड़ के आ गया इस पार चूँकि जब
मैं डूब रहा था तो तुम भी मेरे साथ थे