जीवन है वह बगिया जिसमें / रिंकी सिंह 'साहिबा'
जीवन है वह बगिया जिसमें,
रंग-बिरंगे फूल।
इन फूलों पर सुख दुख जैसी,
उड़ती रहती धूल।
के मन बेगाना जोगी
दंभ , द्वेष के आलिंगन में बोलो कब मुस्काया,
छल प्रपंच के आडम्बर में चैन कहाँ कब पाया,
प्रेम पिपासु हृदय है अपना, मत जाना तुम भूल।
के मन बेगाना जोगी।
जो जितना कमज़ोर है जग में उतना बोझ उठाए,
मिट्टी का ये काया इक दिन मिट्टी में मिल जाए,
चुनते चुनते हार गए सब पथ में बिखरे शूल।
के मन बेगाना जोगी।
बूंद - बूंद में बसा हुआ है जैसे सावन मास,
एक नदी के दो ही किनारे दोनो को है प्यास,
अपने भाग पे रोएं कब तक ये नदिया के कूल?
के मन बेगाना जोगी
मन के जीते जीत हुई तो मन के हारे हार,
इक दीपक ही कर देता है सघन तिमिर निस्सार,
थक कर बैठ नहीं रे बंधू समय नहीं अनुकूल।
के मन बेगाना जोगी।