जीवन / अखिलेश श्रीवास्तव
क्षण भंगुर है जीवन तो
शाश्वत क्या है
मृत्यु?
जिसकी एक भी स्मृति अपने पास नहीं!
माटी, अम्बर, जल, वायु, अग्नि
जिससे मिलकर बना है यह घट
जीवन उसी के विराट हो जाने की कहानी है!
माटी उपजाने लगे अन्न
और भरने लगे कई पेट
तुम्हारे भीतर के आकाश में उड़ान लेने लगे कुछ आश्रित पंछी
विष इतना चख लिया हो कि जल बदल जाये खारे समंदर में
उच्छवास से किसी की मद्धिम लौ-सी कोई उम्मींद
देखते ही देखते अग्नि शिखा हो जाये
तो अपनी पीठ ठोक लेना!
अपने शव से कहना कि
तू एक जिंदा आदमी की लाश है।
तुझमें जीवन और मृत्यु साथ-साथ नहीं रहे
तेरे लिये जीवन एक युग था और
मृत्यु एक क्षण।
ऐसा हुआ तो
तेरे भीतर की अग्नि को अग्नि बन जाने के लिए
घी की कोई ज़रूरत नहीं
तू लौटा सकेगा अम्बर को अम्बर
माटी को माटी!
बाकी ईश्वर पर छोड़ दे
वो रच सके तो रच ले फिर से
तुझ जैसा जीवन।