भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन / कुसुम जैन
Kavita Kosh से
घूंघर-घूंघर बरसती हैं बूंदें
झूमते हैं पत्ते
पत्ता-पत्ता
जी रहा है
पल-पल को
आने वाले
कल से बेख़बर