जीस्त कटी जाती है आने जाने में
कौन खड़ा है अँधियारे वीराने में
हम खुशियों को ढूंढ़ रहे थे गलियों में
ग़म आ लिपटे दामन से अनजाने में
यादें तेरी जैसे तारों की लड़ियाँ
सजी हमारे दिल के इस बुतखाने में
ये पतझारें वीराने औ तनहाई
सारे लगे हुए मन को भरमाने में
मिलता मीत नहीं सच्चा आसानी से
ढूँढ़ रहे हैं हम अपने बेगाने में
लिख डाला ना जाने क्या-क्या है तूने
जिक्र हमारा भी है उस अफ़साने में
है खुदगर्ज़ बहुत यह दुनियाँ जान लिया
अपना मिला नहीं बेदर्द जमाने में