भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जी चाहता है / मनीष कुमार झा
Kavita Kosh से
कोई गीत गाने को जी चाहता है
गजल गुनगुनाने को जी चाहता है
गगन में चमकते करोड़ों सितारे
घड़ी भर टिमक कर छिपेंगे बिचारे
सितारों से रौशन जहाँ ढूँढने को
सितारों पर जाने को जी चाहता है
चली सरसराती हवा बाँह खोले
फिजाएँ मधुर मौसमी राग घोले
लुटाए कोई मस्तियाँ ज़िन्दगी की
वहीं जां लुटाने को जी चाहता है
कहीं कोई आशा रहे ना अधूरी
मिले दिल से दिल, ना रहे कोई दूरी
हर इक आदमी प्यार का देवता हो
वो जन्नत बसाने को जी चाहता है