जी चाहता है / शशि पाधा
जी चाहता है आज कुछ नया करूं!
सिंधु की तरंग-सी
चाँद को चूम लूं,
वसंत के उल्लास में
तरंग बन झूम लूं
बीच जल धार में
भंवर बन घूम लूं।
जी चाहता है
साज के तार में
गीत बन कर सजूं
कोकिला के गान में
प्रेम के स्वर भरूं
धरा के खंड खंड को
राग रंग से रंगूं ।
जी चाहता है
पंछियों की पाँत में
गगन तक जा उड़ूँ
पुष्प के पराग में
सुगंध बन कर बसूँ
तितलियों की पाँख में
रंग बन कर घुलूँ ।
जी चाहता है
तारों के इन्द्र जाल में
दीप बन कर जलूँ
दूधिया नभगंग में
धार सी जा मिलूँ
ऒढ़ नीली ओढ़नी
बादलों में जा घिरूँ
जी चाहता है
प्राण में उमंग हो
गान में तरंग हो
जिस राह् पर चलूँ
हास मेरे संग हो
धरा से आकाश तक
प्रेम क ही रंग हो
जी चाहता है जी भर कर जियूँ !
जी चाहता है आज कुछ नया करूँ !