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जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर / फ़ानी बदायूनी
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जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर
इस आपकी ज़मीं से अलग, आस्माँ से दूर
शायद मैं दरख़ुर-ए-निगह-ए-गर्म भी नहीं
बिजली तड़प रही है मेरे आशियाँ से दूर
आँखें चुराके आपने अफ़साना कर दिया
जो हाल था ज़बाँ से क़रीब और बयाँ से दूर
ता अर्ज़-ए-शौक़ में न रहे बन्दगी की लाग
इक सज्दा चाहता हूँ तेरी आस्तां से दूर
है मना राह-ए-इश्क़ में दैर-ओ-हरम का होश
यानि कहाँ से पास है मन्ज़िल, कहाँ से दूर