भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जी तरसता है यार की ख़ातिर / हातिम शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जी तरसता है यार की ख़ातिर
उस सीं बोस-ओ-कनार की ख़ातिर

तेरे आने से यू ख़ुशी है दिल
जूँ कि बुलबुल बहार की ख़ातर

हम सीं मस्तों को बस है तेरी निगाह
तोड़ने कूँ ख़ुमार की ख़ातिर

बस है उस संग-दिल का नक़्श-ए-क़दम
मेरी लौह-ए-मज़ार की ख़ातिर

उम्र गुजरी कि हैं खुली ‘हातिम’
चश्म-ए-दिल इंतिज़ार की ख़ातिर