भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जी पहला मास जै लागिया, दूध दही मन जाय / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जी पहला मास जै लागिया, दूध दही मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
दूजा मास जै लागिया, मेरा निबुआं में मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
तीजा मास जै लागिया, मेरा बेरा में मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
चौथा मास जै लागिया, मेरा लाडूआं ने मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
पांचवां मास जै लागिया, मेरा खरी पूडां में मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
छटा मास जो लागिया, मेरा गूंद गिरी मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
सातवां मास जै लागिया, मेरा फलियां में मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
आठवां मास जै लागिया, मेरा धाणी में मन जाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।
नौवां मास जै लागिया, मेरा होलड़ सबद सुणाय,
मेरे अंगणा में अमला बो दिया।