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जी मुहब्बत से भर गया कब का / रंजना वर्मा

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जी मुहब्बत से भर गया कब का
जो नशा था उतर गया कब का

है चमन में वो ढूँढता कलियाँ
रूप उनका निखर गया कब का

जिस के साये में खेलते थे हम
सूख है वो शज़र गया कब का

मुझको मंजिल दिखा रहा था जो
हो गया रास्ता जुदा कब का

जो न करता कभी मुरव्वत है
बन गया है वही खुदा कब का

रोग हर लेता था दुआओं से
वैद बूढ़ा था मर गया कब का

प्यार से ईंट थी रखी जिस की
घर मकाँ है वो बन चुका कब का