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जी होता चिड़िया बन जाऊँ / सोहनलाल द्विवेदी
Kavita Kosh से
जी होता, चिड़िया बन जाऊँ!
मैं नभ में उड़कर सुख पाऊँ!
मैं फुदक-फुदककर डाली पर,
डोलूँ तरु की हरियाली पर,
फिर कुतर-कुतरकर फल खाऊँ!
जी होता चिड़िया बन जाऊँ!
कितना अच्छा इनका जीवन?
आज़ाद सदा इनका तन-मन!
मैं भी इन-सा गाना गाऊँ!
जी होता, चिड़िया बन जाऊँ!
जंगल-जंगल में उड़ विचरूँ,
पर्वत घाटी की सैर करूँ,
सब जग को देखूँ इठलाऊँ!
जी होता चिड़िया बन जाऊँ!
कितना स्वतंत्र इनका जीवन?
इनको न कहीं कोई बंधन!
मैं भी इनका जीवन पाऊँ!
जी होता चिड़िया बन जाऊँ!