जुगलबर एक तव, दो रूप।
पुतरी-नयन-तरंग-तोय-सम, भिन्न न भिन्न-स्वरूप॥
सुभ्र चंद्रिका-चंद्र, दाहिकासक्ति-अनल सम एक।
अति उदार बितरत स्वरूप-रस सहज, निभावत टेक॥
जुगलबर एक तव, दो रूप।
पुतरी-नयन-तरंग-तोय-सम, भिन्न न भिन्न-स्वरूप॥
सुभ्र चंद्रिका-चंद्र, दाहिकासक्ति-अनल सम एक।
अति उदार बितरत स्वरूप-रस सहज, निभावत टेक॥