भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुगल के गुनगन अगम अगाधे / स्वामी सनातनदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग देशकार, तीन ताल 3.9.1974

जुगल के गुनगन अगम अगाधे।
प्रीतम-प्रिया प्रान दोउ दोउके, दोउ में दोउ नित रहहिं समावे<ref>समाहित</ref>॥
प्यारी के जीवन मनमोहन, मोहन की जीवन श्रीराधे।
प्रीति-रीति दोउन की अद्भूत, दोउन के गुनगनहुँ अगाधे॥1॥
दोउ दोउ के प्रियतम परिपूरक, दोउ दोउ बिनु लागहिं जनु आधे।
दोउ को दोउ में नेह निरन्तर, मानहुँ दोउ रति-रूप अबाधे॥2॥
दोउ रसरूप रसिक दोउ दोउ के, मनहुँ स्वयं रस द्वै तनु साधे।
महा मधुर मोहनि दोउ मूरति, बाधहिं निज जन की सब बाधे॥3॥
भूरि भाग्य पावहिं जे रति-रस, तिनके बस सब होहिं समाधे<ref>समाधान</ref>।
अज-भव हूँ नित तिनहिं, भुक्ति-मुक्ति नित तिनहिं अराधे॥4॥
तिन की पद-रज पाय मूढ हूँ पावहिं प्रीति-पयोधि अगाधे।
तिन ही के करुना-कनसों हम हूँ कछु-कछु यह रति-रस साधे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>