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जुगल बर परम मधुर रमनीय / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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जुगल बर परम मधुर रमनीय।
सहज मार-रति-मद-मर्दन छबि ललित, कलित, कमनीय॥
बदन-कमल नित सहज प्रड्डुल्लित, सरस मधुर मुसुकान।
बरबस हरत मुनींद्र बिजित-मन बीतराग तपवान॥