भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जुग कौ जादू चल गऔ भौजी / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
जुग कौ जादू चल गऔ भौजी ।
अब तौ समऔ बदल गऔ भौजी ।
मान्स पौंच गऔ आज चाँद पै,
अब ईशुर तक हल गऔ भौजी ।
जोंन दौड़ में पाछें रै गऔ,
समझौ बौई कुचल गऔ भौजी ।
बुरये बखत नें सबखौं पेरौ,
कोउ-कोउ खौं फल गऔ भौजी ।
लालच ऐसी बुरई बला है,
सूद के संग असल गऔ भौजी ।