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जुदाई की शब जैसे सहरा में चलना / उषा यादव उषा

जुदाई की शब जैसे सहरा में चलना
शबे ग़म की आग़ोश में अब है रहना
 
खि़जाओं के मौसम में फूलों का खिलना
कि मुफ़लिस के घर में चिराग़ों का जलना
 
बशर के लिए देखो मुश्किल बहुत है
यहाँ ग़म के खा़रों से बचना संभलना
 
कठिन है डगर औ’ कठिन है ये जीवन
सदा फिर भी मुझको अकेले है चलना
 
ये जीवन तो है आग का एक दरिया
कि हर हाल में इसको है पार करना