भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुदाई की शब जैसे सहरा में चलना / उषा यादव उषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुदाई की शब जैसे सहरा में चलना
शबे ग़म की आग़ोश में अब है रहना
 
खि़जाओं के मौसम में फूलों का खिलना
कि मुफ़लिस के घर में चिराग़ों का जलना
 
बशर के लिए देखो मुश्किल बहुत है
यहाँ ग़म के खा़रों से बचना संभलना
 
कठिन है डगर औ’ कठिन है ये जीवन
सदा फिर भी मुझको अकेले है चलना
 
ये जीवन तो है आग का एक दरिया
कि हर हाल में इसको है पार करना