भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुदाई गीत-4 / तेजी ग्रोवर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे सपने में थोड़े हूँ पगली
मैं तो बैठा हूँ
टाट पर
सजूगर
अचार भरी उँगलियाँ चाटता हुआ

मैं टाट पर थोड़े हूँ
झूलती खाट में
सो रहा हूँ तेरे पास
इतने पास
कि मेरा पेट गुड़गुड़ाया
तो मैंने सोचा मेरा है
भोर तक यहीं हूँ

तू साँस छोड़ेगी
तो भींज उठेगी मेरी कोंपलें
मेरी खुरदुरी उँगलियाँ
नींद की रोई तेरी आँखों पर
काँप-काँप जाएँगी
और तू
झपकी भर नहीं जगेगी रात में

मैं जा रहा हूँ पगली
तेरे खुलने से पहले
उजास में घुल रही है मेरी आँख
छोना मटका तो मान लेना
मैं आया था
घोर अँधेरे तपते तीर की तरह आया था

रात भर प्यासा रहा